हिंदु , हिंदू-शब्द और हिंदू-धर्म
- प्रोफेसर हरी नरके
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इसवी सन 1030 में मोहम्मद गजनवी के साथ भारत में आये फारसी इतिहासकार अल-बरुनी ने पहली बार हिंदू शब्द का लिखित तौर पर प्रयोग किया।
हिंदू शब्द फारसी भाषा के "गया हूल सौगात" शब्दकोश से आया है। जिसका शाब्दिक अर्थ है - काला, चोर, बदमाश, काफिर, असभ्य, गुलाम।
1325 में मोहम्मद तुगलक दिल्ली का सुल्तान बना यह सबसे शिक्षित और योग्य व्यक्ति था। यह अरबी एवं फारसी भाषा का विद्वान था तथा यह खगोलशास्त्र, दर्शनशास्त्र, गणित, चिकित्सा विज्ञान एवं तर्कशास्त्र में पारंगत था। यह सुल्तान विद्वानों की कदर करता था।
इस के दरबार में मोरोको का प्रसिद्ध विद्वान इब्ने बतूता था। इब्ने बतूता के पिता और दादा मोरोक्को मे काजी थे। इब्ने बतूता भी मोरोको का स्कॉलर था मोहम्मद तुगलक ने इसे दिल्ली का काजी याने दिल्ली का मुख्य न्यायाधीश बनाया।
उस वक्त मुसलमानों के साथ शरीयत के अनुसार और भारतीयों के साथ मनुस्मृति के अनुसार न्याय होता था।
उसकी अदालत में भारतीय शूद्रो के बहुत मामले आते थे।
मनुस्मृति के अनुसार ब्राह्मण को ब्राह्मण धर्म, क्षत्रिय को क्षत्रिय धर्म, और वैश्य को वैश्य धर्म के मनुस्मृति में दिये कानून के अनुसार न्याय मिलता था।
मगर जब भी शुद्रो का मामला आता था, तब शुद्रो में अनेक जातियां होने की वजह से मामला बहुत ज्यादा पेचीदा होता था। तब इस शुद्र समूह की लिगल पहचान कराने के लिए इब्ने बतूता ने इन्हें सरकारी रिकॉर्ड में हिंदू नाम से दर्ज किया, तब से सरकारी रिकॉर्ड में _"शूद्रों को हिंदू" कहने लगे।
इस बात का जिक्र एक और ग्रंथ से मिलता है, जिसके लेखक गुजरात के ब्राह्मण महर्षि दयानंद सरस्वती है।
इस ग्रंथ का नाम - सत्यार्थ प्रकाश है।
सन 1875 मे, इस ग्रंथ में दयानंद सरस्वती लिखते है कि हिंदू शब्द ये संस्कृत का शब्द नहीं है। यह मुसलमान शासकों द्वारा हमें दी हुई गाली है, इसलिए हमें अपने-आप को हिंदू नहीं कहना चाहिए।
हम आर्य है और हमारा धर्म भी आर्य है। हमें अपने-आप को आर्य ही कहना चाहिए।
स्वामी दयानंद सरस्वती जो एक कट्टर ब्राह्मण थे, उन्होंने
ब्राह्मणो को हिंदू शब्द का इस्तेमाल न करने की अपील
अपनी इस किताब में की है। इसकी सच्चाई परखने के लिए आपको "सत्यार्थ प्रकाश " किताब पढ़नी पड़ेंगी।
महर्षि दयानंद सरस्वती खुद सत्यार्थ प्रकाश ग्रंथ में यह बात स्वीकार करते हैं कि हिंदू यह मुगलों ने हमें दी हुई गाली है इस वजह से वह _"*हिंदू समाज" की स्थापना न करते हुए "आर्य समाज" की स्थापना करते हैं।*
दूसरा उदाहरण इतिहास में मिलता है जब भारत में जजिया कर लगाया गया तो ब्राह्मणों ने जजिया कर देने से मना कर दिया और कहा कि हम हिंदू नहीं है इसलिए हम जजिया नहीं देंगे।
हम भी आपकी तरह बाहर से आए हुए आर्य शासक है। फर्क इतना ही है कि हम पहले भारत में आए हैं और आप बाद में आये हो।
तब इन्होंने इब्ने बतूता के अदालत में हुये मामलों की दलीलें दी।
इस तर्क से संतुष्ट होकर मुगल शासकों ने भारत के ब्राह्मणों को जजिया कर से मुक्त कर दिया था।
हिंदू शब्द
ये हिंदी शब्द नहीं है।
यह मराठी शब्द भी नहीं है।
यह संस्कृत शब्द भी नहीं है।
यह इंग्लिश शब्द भी नहीं है।
यह मागदी शब्द भी नहीं है।
हिंदू यह पर्शियन फारसी शब्द है।
इसवी सन 12वीं सदी में मुस्लिम जब भारत में आए तब वे धर्म से इस्लामिक थे, मगर उनकी बोली और लिपि परशियन याने फारसी थी।
भारत में आकर जब उन्होंने भारतीय लोगों को हराया, तब उन्होंने हारे हुए भारतीय लोगों को हिंदू की संज्ञा दी तब से यह हिंदू शब्द प्रचलित हुआ।
तब हिंदु शब्द ये धर्मवाचक न होकर समुहवाचक था।
12वीं सदी के पहले हिंदू-शब्द किसी भी ग्रंथ में, बोली-भाषा में अथवा लिखित दस्तावेज में नहीं आता, क्योंकि ये शब्द
रामायण, महाभारत, उपनिषद, भागवत, गीता, ज्ञानेश्वरी, श्रुति, स्मृति, मनुस्मृति, दासबोध, चार वेद, 18 पुराण, 64 शास्त्र और बहुजन संतो के अभंगवानी में, गाथा में, दोहे में, भारुड में, किसी में भी हिंदू धार्मिक ग्रंथों में, यह शब्द नहीं है।
ब्राह्मण खुद को कभी हिंदू नहीं समझते और न ही मानते है। वह खुद को ब्राह्मण ही कहते हैं।
मगर वह शूद्रों को अर्थात एससी, एसटी, ओबीसी और धर्म परिवर्तन करने वालों को हिंदू कहते है और हिंदू मानते है।
कोलकाता मे स्थित सबसे बड़ी नेशनल लाइब्रेरी है।
वहां आप पर्शियन डिक्शनरी में हिंदू शब्द का अर्थ देख सकते है।
हिंदु शब्द का अर्थ है - गुलाम, चोर, काले मुंह वाला, गंदा, रहजन (मार्ग का लुटेरा), हारे हुए भारतीय लोग।
हिंदू यह शब्द, दो शब्दों से बना हुआ शब्द है -
पहला शब्द हीन और दूसरा शब्द दुन
हिन का मतलब - तुच्छ, गंदा, नीच
दुन का मतलब - लोक, प्रजा, जनता
तुलसीदास ने 16वीं सदी में रामचरितमानस लिखी, उ
Kavita Singh
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